कोलंबो। श्रीलंका ने भारत को बड़ा रणनीतिक झटका दिया है। कोलंबो बंदरगाह पर कंटेनर टर्मिनल बनाने को लेकर श्रीलंका ने भारत और जापान के साथ समझौता किया था, इससे श्रीलंका ने बाहर होने का फैसला किया है। टर्मिनल के निर्माण को इलाके में चीन के बढ़ते प्रभाव को काउंटर करने के कदम के तौर पर देखा जा रहा था। कोलंबो बंदरगाह पर पूर्वी कंटेनर टर्मिनल का निर्माण चीन के विवादित 50 करोड़ डॉलर की लागत वाले कंटेनर टर्मिनल के नजदीक किया जा रहा है। इस टर्मिनल में भारत और जापान की 49 फीसदी की हिस्सेदारी थी। श्रीलंकाई सरकार ने कहा कि अब वहां टर्मिनल का विकास अकेले ही करेगी। इसका स्वामित्व श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी के पास रहेगा और इसकी लागत 80 करोड़ डॉलर होगी।
ये समझौता मई 2019 में हुआ था। समझौते के कुछ महीने बाद ही श्रीलंका में गोटाबाया राजपक्षे सत्ता में आए थे। हालांकि, पिछले कुछ वक्त से गोटाबाया राजपक्षे को गठबंधन में शामिल राष्ट्रवादी ताकतों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। राष्ट्रवादी संगठनों का कहना है कि राष्ट्रीय संपत्तियों को विदेशियों को नहीं बेचा जाना चाहिए। राजपक्षे ने दो हफ्ते पहले ही क्षेत्रीय भू-राजनीतिक समीकरणों का हवाला देकर कहा था कि परियोजना पर काम जारी रहेगा। कोलंबो में भारतीय उच्चायोग ने भी श्रीलंका की सरकार से समझौते को लेकर अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने की अपील की थी।
गोटाबाया राजपक्षे के भाई महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं। महिंदा राजपक्षे जब साल 2005 से लेकर साल 2015 तक राष्ट्रपति थे,तब उन्होंने चीन से अरबों का कर्ज लिया था। कोरोना की वजह से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है,इसके बाद श्रीलंका इस साल चीन से और ज्यादा कर्ज ले सकता है। दिसंबर 2017 में, चीन के कर्ज का भुगतान ना कर पाने पर श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह चीन के हवाले करना पड़ा था। श्रीलंका ने समझौते के तहत बंदरगाह को चीनी कंपनी को 99 साल के लिए लीज पर दे दिया था जिसे लेकर पूरी दुनिया में चिंता जाहिर की गई थी।
भारत और अमेरिका को डर है कि हंबनटोटा जैसे अहम रणनीतिक क्षेत्र में चीन का पैर जमाना हिंद महासागर में उसे सैन्य बढ़त के मौके दे सकता है। साल 2014 में जब चीनी पनडुब्बियां कोलंबो टर्मिनल पर अघोषित रूप से आ धमकी तब भारत ने इस लेकर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। भारत के विरोध के बाद से श्रीलंका ने चीनी पनडुब्बियों को टर्मिनल पर आने की इजाजत नहीं दी है। हालांकि, श्रीलंका के नए कदम से भारत को रणनीतिक रूप से बड़ा नुकसान होने वाला है।